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Stree Ko Stree Hi Rehne Do
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ISBN 13: 978-93-90548-28-6
Authors:Monika Yadav
Publisher : Book Rivers (05 April 2021)
Language : Hindi
Binding: Paperback
Papges : 122 pages
Country of Origin : India
Generic Name : Poetry
Category: POETRY
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वास्तव में गोपियों के प्रेेम पर कुछ लिखना मुझ सरीखे साधारण मनुष्य के लिए अधिकार की बात नहीं हैं। गोपियों के प्रेम के रहस्य को परम भक्त ही जान सकता हैं, जिसपर श्रीमती राधिका जी और करूणा वरूणालय श्री कृष्ण की कृपा करेंगे वहीं जान, (लिख) सकता हैं। क्योंकि गोपियों का प्रेम भगवान वासुदेव के प्रति विशुद्ध है, गोपियों का प्रेम कल्पना प्रीत, अलौकिक और अप्राकृत है। बृज के सारे ब्रजवासी भगवान की माया से मुक्त है और भगवान श्याम सुन्दर की आनन्द शक्ति योग माया श्री राधिका जी की ही अध्यक्षता में भगवान श्री कृष्ण की मधुर लीला में योग देने के लिए ब्रज में गोपियों के रूप में ब्रज मँडल में प्रगट हुए है।
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तीनों रचनाकार नितिन श्रीवास्तव, दुर्गा ठाकरे, दीपक बरनवाल भिन्न भिन्न पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका साथ आकर एक साथ योगदान करके उन्मुक्त छंद की रचना करना अपने आप में एक बहुत ही बड़े सामंजस्य और समझ बुझ का परिचायक है। इनके साथ आने का संयोग अवश्य ही बहुत शुभ था जो कि अंततः उन्मुक्त छंद की प्रणेता बनी। तीनों ने ही अपनी अपनी जीविकोपार्जन के दौरान विभिन्न प्रकार के अनुभवों एवं विभिन्न प्रकार के विद्वानों से तरह तरह से अभिमुख हुए और उन्ही संगतियों और विसंगतियों के बीच बहुत कुछ सीखा और समझा है, हमें अपने विद्वता का दम्भ भरने का साहस कदापि नहीं कर सकते परंतु उन्मुक्त छन्द के द्वारा समाज के समझ अनुभवों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं आपको पसंद आएगी। हमारे जीवन में घटित होने वाले घटनाओं से उपजित भावों का संग्रह है, उन्मुक्त छन्द में हमनें सभी तरह के भावों को संजोने का प्रयास किया है चाहे वह प्रेम हो, जीवन पथ में आने वाले तरह तरह के संघर्ष हों, सामाजिक बुराइयों की आलोचना हो, सामाजिक तंत्र से फैली असमानता हो या गुदगुदाते काव्य हों, सभी को हमनें आपके सम्मुख समान भाव से प्रस्तुत करने की चेष्ठा की है। अभी अभी तो उदित हुए हैं, कि, कहीं दूर अनंत है अपना अंत। लक्ष्य एक इस जीवन का, कि, दर्शित काव्य हो हमारा दिग दिगंत। उन्मुक्त छन्द
Dard Ke Saye (Hindi)
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इस पुस्तक के लेखक दर्शन कुमार वसन का जन्म जम्मू ( जम्मू कश्मीर ) में 1953 में हुआ। 1975 में जम्मू विश्वविद्यालय से कैमिस्ट्री में एम एस सी की। 1976 में भारत सरकार की सेवा में चण्डीगढ़, भुवनेश्वर और लुधियाना में रहे। 2013 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना कैम्पस में स्थित केन्द्रीय सरकार के भारतीय अनाज संचयन प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान से सहायक निदेशक के पद पर से सेवा निवृति प्राप्त की। इस से पहले 10 लघु नाटकों का संग्रह " खोये चेहरे का दर्द प्रकाशित हो चुका है।
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ख़्वाब को कर वहे के बारे मंे सोचत ेहैं, बहुत महेरबान है ये जि़्ांदगी जो हमश्ेाा कुछ न कुछ नया दिखाई दिला दतेी हैं। बड़ ेमन से उतर रहा हैं उस चमकीली दुनिया का बड़ा एक जा ेगोनत रूप यह डाउन दोल कर के इसे उसी के हर तरह की अपनी एक फेसबुक जैसे फोकस मे ंअपने मे ंराजा होना। बहुत सारे लड़के अंदर नये लड़के से मिला और मे ंलड़के और गये इसलिये बोल रहा हूँ कि बहुत हैं जो सच ये एक मिशाल की पर खड़ ेऔर दहे हैं, कुछ ओर ऐस ेहैं जा ेदेख-देखकर अपनी दुिनया एक अपनी आरजू को किसी के तरह बना रहे हैं।
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नमस्कार, वर्ष 1990 के पूर्व से काव्यधाराएँ मुझे अपनी आरे आकर्षित करने लगी थीं। परन्तु उन कविताओं, गीतो ंमें मेरा अपना क्या था, मुझे समझ नहीं आता था। वर्ष 1990 मे ंजब मैं कक्षा 10वीं में अध्ययनरत था उन दिनो ंमंैन ेएक छन्दात्मक कविता जिसका शीर्षक ‘‘सपना‘‘ लिखी और उसी को मैं अपनी पहली रचना मानता हँू। जिसे मेर ेसहपाठी यारों ने खबू सुना व सराहा खास कर वर्तमान में रीवा मे ंरहन ेवाले मेरे मित्र श्री बृजेश अग्निहोत्री को आज भी यह रचना बहुत पसंद है। छन्दात्मक रचनाओ ंके बाद मैंने अतुकांत रचनाएँ भी लिखीं पर समय के परिवर्तन न ेमुझमे ंभी परिवर्तन लाया और मैं गीत, गज़ल आदि भी लिखने लगा। इसी दौरान मैंन ेआकाशवाणी एवं मंचीय कवि सम्मेलनों मे ंकाव्यपाठ किया। उसी समय से प्रदेश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं मे ंमेरी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है। मैं शुरू से ही अपना नाम ‘‘कुमार सागर‘‘ लिखता आ रहा हूँ। मैंने वर्ष 1995-96 मे ं एक अखिल भारतीय कविसम्मेलन (दमोह) में भी भाग लिया, जिसके आयाजेक, संयाजेक व मंचीय कवि कौन-कौन थे मुझे याद नहीं, परन्तु यह याद है कि मंच का संचालन श्री अशाके चक्रधर जी ने किया था एव ंआदरणीय कुमार विश्वास भी उस मंच पर थे। उस समय भी लोग न ेश्री विश्वास जी को बहुत सुनना था, हम लागे ांे न े काव्यपाठ किया। दसू र े दिन तीन-चार कवियांे के बीच समाचार पत्रों में मेरा चित्र भी प्रकाशित हुआ, जिससे काव्य-रचना के प्रति मेरा रूझान और भी बढ़ा।
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