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Marm Sparsh ( Hindi)

149.00 139.00
मममस्पर्म के माध्यम े मैंने अपने जै े ही अथाह वेदना हने वाले व्यचथि जनों की व्यथा कथा को पाठकों के म्मुख रखने का प्रयत्न ककया है। मेरी कथाओिं के पात्र िो भारि के प्रत्येक र्गााँव में शमलिे हैं ककिंिु उन्हें मरणोपरािंि िो छोड़ ही दें जीवन काल में भी इिना कष्ट हने के उपरान्ि कोई उचचि िंवेदना नहीिं प्राप्ि होिी। इन लोर्गों पर िो इनकी मकालीन पीहढ़यािं ही ध्यान नहीिं देिी हैं भावी पीढ़ी की िो बाि ही छोड़ दें। मेरा यह प्रया ग्रामीण अिंचलों के दुःखनायकों को िंवेदना पूणम श्रद्धािंजशल मात्र है।

Fir Devta aa Gaye (Hindi)

120.00 110.00
मैंने रोशनी को भीख मांगते देखा है, तिमिर से जिसके माथे की सिलवटें पढ़ सकता था कोई भी निर्जनता में पथरीला रस्ता करता है इंतज़ार एक उजड़े मुसाफ़िर का बरसों से कि कोई तो आये, इतना बड़ा दिल लेकर

STORE ATMOSPHERICS AND CONSUMER BEHAVIOUR K.SARANYA

399.00
The country has seen a radical revolution in retailing after globalization. Different formats of stores have been opened up many in cities across India. The multi-storied malls, hypermarkets, supermarkets have all made a revolution in retail experience among the consumers. Therefore, the customers do not only visit the store for buying goods and services, they go with the expectation of having fun, entertainment, spending leisure time etc. Moreover, the consumers‟ purchasing power has been increasing and this encourages the retailers to concentrate on building a better environment in the stores.

The Postcolonial Experience

399.00
I would like to investigate the genre of postcolonial science fiction in the context of capitalist globalization. Science fiction is predominantly a western genre, and it is very difficult to find postcolonial/third world works in this genre. I will first try and establish the validity of this genre and how it relates to globalization and imperialism. Some of the key questions I will examine are: How postcolonial science fiction relates to late capitalism and globalization? What is the role of technoscapes in the genesis of postcolonial science fiction genre and how in turn postcolonial science fiction represents technoscapes?

कामकाजी माताएँ एवं किशोर

249.00
कुछ शोध परिणामों से यह ज्ञात हुआ है कि व्यवसाय का प्रकार, व्यवसाय की स्थिति/पद तथा माता का व्यवसाय से समझौते का स्तर, माता की क्रियाओं की गुणवत्ता तथा बालकों की देख-रेख के स्तर में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इस सम्बन्ध में हाॅफमैन (1989) बताते हैं कि व्यवसायरत् माताओं की कि‛ाोर बालिकायें सामाजिक रूप से अपने आपको अधिक समर्थ पाती हैं। उनके आत्मवि‛वास, आत्म उपयुक्ततता एवं स्वतंत्रता की भावना में बढ़ोत्तरी होती है। यही तथ्य बालकों के लिए अलग होता है क्योंकि माताओं का व्यवसायरत् होना कि‛ाोर बालकों पर अलग प्रकार का प्रभाव डालता है। इसके विपरीत बहुत ही सफलतम परिवारों में व्यवसायरत् माताओं के कि‛ाोरों की बुद्धिलब्धि तथा पहचान अधिक उच्च कोटि की होती है। यह विपरीत प्रभाव कई कारणों से प्रभावित होता है।

Unconditional Love Mom

239.00
My world is just a small place with all the comforts- Mother’s lap.” This anthology is written in all genres and languages which makes it more beautiful just like our dear mother. A relationship of a mother and a child is “unconditional” because she loves with our flaws, our mistakes, our grievances, continually forgiving us, giving us another chance to improve and a lot more. Unconditional means loving them without any conditions, regardless of the circumstances, accepting them as they are. A mother can only do such wonders. Every page is fascinating and utterly addictive. Mothers will always bring our teeths shine brighter and make us laugh louder because from where we all came into existence is the only place where the unconditional love started. After all God’s perfection on earth lies in our mothers. Thankyou Mom for everything. Hope you thanked your mom too after reading this book.”

भगवतीस्तोत्रावलिः

129.00
प्रणाम्!! आप जिस पुस्तक के बारे में प-सजय़ रहे हैं वह एक संस्कृत काव्य है जिसमें भगवती दुर्गा की स्तुतियाँ निहित हैं। यह संस्कृत भाषा की पद्य शैली की रचना है जिसका हिन्दी अनुवाद भी है। संस्कृत में गीत परक रचित काव्य आप पाठक-ंउचयजन को अवश्य आनन्द देने वाला होगा। अतः आपसे सानुरोध निवेदन है कि इस पुस्तक को एक बार अवश्य प-सजय़े। आपके आशीष का आकाँक्षी। धन्यवाद!!

Gardo Gubar ( Hindi )

149.00
िरयष्ठ कवि, रेखक, सभारोचक ईश कुभाय गॊगाननमा द्िाया शरखखत ‘गदो-गुफाय’ शीर्ािंककत कविताओॊ/ाज़रों की ऩाण्डुशरवऩ भेये हाथों भें है। उनकी फहुत-सी यचनाओॊ को शशल्ऩ औय व्माकयण के इतय बाि की दृजष्ट से देखा तो ऩामा कक दहॊदी कविता के इनतहास भें गॊगाननमा की ाज़रों/कविताओॊ भें नमाऩन है। सभकारीन ऩरयजस्थनतमों भें उनकी ाज़रें साभाजजक, आधथतक, धाशभतक, सादहजयमक औय याजनीनतक आचयण को उजागय कयने भें ननफातध गनत से अऩने दानमयि का ननिातह कय यही हैं। उनके इस सॊग्रह की ऩहरी ाज़र/कविता ही आज के सभाज की व्मथाओॊ का खुरासा कयने का दानमयि ननबाने की ओय अग्रसय हैं। एक फाय तो ऐसा रगा कक शामद इस सॊग्रह की मह कविता उनके इस सॊग्रह की प्रनतननधध कविता है।

Bacche Man Ke Sacche (Hindi)

300.00

Product details

  • Publisher : Book Rivers (15 September 2020)
  • Language : Hindi
  • Paperback : 54 pages
  • ISBN-10 : 8193572874
  • ISBN-13 : 978-8193572870
  • Country of Origin : India
  • Generic Name : Book

मै बपुरा बूडन डरा – Main Bapura Budhan Dara (Hindi

199.00

Product details

  • Publisher : Book Rivers; First Edition (14 September 2019)
  • Language : Hindi
  • Paperback : 192 pages
  • ISBN-10 : 8194236312
  • ISBN-13 : 978-8194236313
  • Dimensions : 1.1 x 1.3 x 2.1 cm
  • Country of Origin : British Indian Ocean Territory
  • Generic Name : Books

Kashmkash/ कशमकश (Hindi)

249.00
काव्य संग्रह- ‘कशमकश‘। जिन्दगी के हर मोड़़ पर और हर क्षेत्र में कहीं न कहीं, किसी न किसी तरह व किसी न किसी रूप में ‘कशमकश‘ दिखाई देती है। चाहे वो रोजमर्रा की जिन्दगी हो या कोई विशेष दिन या फिर कोई ख़ास मौका ही क्यों न हो! यहाँ तक कि रिश्तों में भी इसकी घुसपैठ रहती है। वो रिश्ते सामाजिक और पारिवारिक दोनों प्रकार के होते हैं, मूल रूप में सबकुछ सामाजिक ही होता है, इसलिए कि परिवार समाज की इकाई और मनुष्य परिवार की! लेकिन अपनी ही धुन में होने के कारण इस तथ्य की तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता और हम बिना वजह जाने क्या-क्या सोच लेते हैं, क्या-क्या कर लेते हैं। विभिन्न स्तरों पर हम मौके तलाशते हैं, मगर उसकी खींचातानी में बहुत कुछ बदल जाता है, छीजकर बिखर जाता है, ऐसे में जाने कब एक खलिश भरी कशमकश घेर लेती है।

Sathiyai Aurat (Hindi)

249.00
उम्र आती गई अपने निशान छोड़ती गई साथ में कमजोरियों को भी बड़ी शिद्दत से जी-जान से ले आती गई तुम, उम्र का तकाजा कहकर स्वीकारती गई मगर अपनी कर्मठता, जीवटता और बिंदासपने को कभी नहीं छोड़ा तभी तो हर आघात हर चोट के बाद उतने ही उत्साह और नये जोश के साथ उनका सामना करती अंगूठा दिखाती